ईमानदार लकड़हारा
किसी गाँव में दिनानाथ और सोमनाथ नान के दो लकड़हारे रहते थे। वे पड़ोसी थे। दिनानाथ बहुत ईमानदार एवं कर्मठ व्यक्ति था वही सोमनाथ बहुत ही आलसी एवं मतलवी इंसान था। दोनों ही पास के जंगल में लकड़ियां काटते और उन्हें बाजार में बेचकर अपनी आजीविका कमाते थे।
एक दिन हमेशा की तरह दिनानाथ सुबह-सुबह उठा और अपने काम पर जाने के लिए तैयार हो गया। सोमनाथ से उससे देखा और मन ही मन सोचता है कि ये दिनानाथ कितना मुर्ख आदमी है जो इतनी सुबह-सुबह काम के लिए निकल गया। मै तो बाद में आराम से जाऊँगा और ये सोचकर वो फिर सो गया।
दिनानाथ जंगल पहुँचा और लकड़ियां ढूंढ़ने लगा परन्तु उसे अच्छी लकड़ियाँ नहीं मिल रही थी अतः उसने नदी के पास जाने का फैसला किया जहाँ उसे आसानी से लकड़ियाँ मिल जाए। वो नदी के तरफ जाता है जहा उसे एक बड़ा पेड़ मिलता है। वह पेड़ पर चढ़ गया और लकड़ी काटने लगा। जैसे ही उसने लकड़ियां काटना की शुरुआत कि उसका कुल्हाड़ा उसके हाथ से फिसल कर नदी में गिर गया। वो तैरना नहीं जानता था इसलिए वो वही नदी किनारे बैठकर रोने लगा कि ये मैंने क्या कर दिया ? मैंने अपनी एकमात्र संपत्ति खो दी, जिससे मै पैसे कमाता था। उसके बिना, मैं क्या करूंगा? हे भगवान, कृपया मेरी मदद करो और भगवान से प्रार्थना करना शुरू कर दिया।
देवी ने उसकी प्रार्थना सुनी और उसके सामने प्रकट हुई और पूछा कि वह क्यों है रो रहा है ? दिनानाथ बोला, हे माते ! मेरा कुल्हाड़ी इस नदी में गिर गया है। मेरे पास बस एक ही कुल्हाड़ी थी और मेरे जीवन यापन का भी बस वो एक साधन था। देवी ने बोला परेशान मत हो बेटा, मै तुम्हे कुल्हाड़ी निकाल कर देती हु। यह कहकर देवी ने नदी में से एक सोने की कुल्हाड़ी निकली और पूछा कि क्या ये कुल्हाड़ी तुम्हारा है। दिनानाथ ने बिना हिचकिचाए मना कर दिया। देवी ने फिर नदी से चांदी की एक कुल्हाड़ी निकली और पूछा की क्या ये कुल्हाड़ी तुम्हारा है? दिनानाथ ने फिर से मना कर दिया। देवी ने इस बार उसकी लोहे की कुल्हाड़ी निकली और पूछा की क्या ये कुल्हाड़ी तुम्हारा है ? दिनानाथ ने ध्यान से कुल्हाड़ी को देखा और खुशी से बोलै हाँ माते! ये मेरा ही कुल्हाड़ी है।
देवी उसके ईमानदारी से बहुत खुश हुई और उसे उसके ईमानदारी के उपहार में तीनो कुल्हाड़ी दे दिया। दिनानाथ तीनो कुल्हाड़ी लेकर अपने घर की ओर चल दिया। जब वह सोमनाथ के घर के पास से गुजरा तो सोमनाथ उसकी तीनो कुल्हाड़ी देख कर भोचक्का रह गया। उसने सोचा की सुबह तो दिनानाथ सिर्फ एक ही कुल्हाड़ी के साथ गया था तो फिर उसके पास सोने और चांदी कुल्हाड़ी कहाँ से आई। कुछ तो हुआ है और ये सोचकर उसने दिनानाथ का पीछा करने का फैसला किया।
सोमनाथ ने बिना दिनानाथ को बताई उसका पीछा करना शुरू कर दिया। जब दिनानाथ घर पॅहुचा तो उसने अपनी पत्नी को बुलाया और तीनो कुल्हाड़ी दिखाई। उसकी पत्नी ने जब सोने और चांदी की कुल्हाड़ी देखी तो वो भी आश्चर्यचकित रह गई। दिनानाथ ने फिर सारी बात अपनी पत्नी को बताया कि कैसे उसकी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई थी और कैसे देवी ने उसे तीनो कुल्हाड़ी दी। सोमनाथ सारी बात छुपकर सुन रहा था।
अगली सुबह दिनानाथ उठा और अपने काम पर चल दिया। सोमनाथ ने फिर से चुपके उसका पीछा किया और उसी नदी के पास पहुँच गया जहाँ दिनानाथ लकड़ियां काट रहा था। दिनानाथ पेड़ के पास पहुँचा और लकड़ियां काटना शुरू कर दिया जबकि सोमनाथ वही छुपकर दिनानाथ के जाने का इंतज़ार करने लगा।
जैसे ही दिनानाथ अपना काम ख़त्म कर वहाँ से गया, सोमनाथ नदी के पास पहुँच गया और जान-बूझकर अपनी कुल्हाड़ी को नदी में फेक दिया। वो भी वहाँ बैठकर रोने लगा। देवी उसका रोना सुनकर उसके सामने प्रकट हुई और पूछा कि वह क्यों है रो रहा है ? सोमनाथ ने कहा कि उसका कुल्हाड़ी नदी में गिर गया है और वो उससे वापस लेना चाहता है। देवी समझ गई कि वह झूट बोल रहा है और उसे सबक सिखाने का फैसला किया।
देवी ने पहले उसका लोहे का कुल्हाड़ी निकला और पूछा क्या ये तुम्हारा है? अब सोमनाथ सोचने लगा कि दिनानाथ ने तो अपनी पत्नी को बताया था कि देवी ने उसे पहले सोने की कुल्हाड़ी दिखाई थी लेकिन देवी मुझे लोहे की कुल्हाड़ी दिखा रही है। उसने फैसला किया कि वो ये कुल्हाड़ी नहीं लेगा अतः उसने मना कर दिया। देवी ने फिर चांदी की कुल्हाड़ी निकली और पूछा कि ये कुल्हाड़ी तुम्हारा है ? सोमनाथ ने फिर से मना कर दिया। अब देवी ने सोने की कुल्हाड़ी निकली और पूछा कि क्या ये तुम्हारी कुल्हाड़ी है ? सोमनाथ ने कहा हां, हां ये मेरी कुल्हाड़ी है।
देवी सोमनाथ की धूर्तता देख क्रोधित हो गई और बोलै की तुमने मुझसे झूठ कैसे बोलै ? तुम्हे इसके लिए सजा मिलनी चाहिये ! यह कहकर देवी उसकी कुल्हाड़ी के साथ अदृश्य हो गई। सोमनाथ रोने लगा और अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगने लगा लेकिन उसका रोना कुछ काम ना आया। वह कुल्हाड़ी के बिना घर लौट आया जो उसकी एकमात्र संपत्ति थी। लेकिन उसने अपना सबक सीख लिया था।
शिक्षा - ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है
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